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ममतामयी
विश्वजाल पर माँ को समर्पित कविताओं का संकलन

 

माँ की गंध

मैं उलझी हूँ एक वाक्य से
जो मेरे सपने में था

परिवार लड़कियाँ
बहनें भाभियाँ सहेलियाँ मौसियाँ
बेटियाँ, दूतियाँ
रौनक भरा सपना
एक सपनों भरा सपना

बस एक ही वाक्य से स्पंदित था मेरा सपना
एक ही वाक्य में पिरोये थे
मोती, कलियाँ, फूल, कंटक
किलकारियाँ, अठखेलियाँ, आँसू
गर्वोन्नत स्नत, सर्जक यंत्रणामय गर्भाशय
सद्यभू मातृत्व की चीखें

मैं सुन कह रही थी एक ही वाक्य
आज आन बसी है माँ की गंध मुझमें।



यह नहीं माँ की गंध जो हवा में बसी है
या पानी में या फूल में
ये तो निकसती है अंदरी गुफ़ा से
तैरती है अंदरी गुफ़ा तक
रम जाती है वहीं कहीं गुफ़ा में
न दीखती है न सुँघती है
किसी रहस्य की कुंजी की तरह
पड़ी रहती है अपनी गुफ़ा में
जब कोई जादूगर बताता है कुंजी का पता
तभी खोज होती है
गंध की

- सुषम बेदी
१९ मार्च २०१२


 

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