माँ ऊन सलाई ले
गिरे हुए फंदे उठाती है।
मोटी लाल बिंदी में
कुछ अधिक ही
माँ नज़र आती है।
वो बात बेबात
हँसती है, मुस्कुराती है।
कड़कती धूप में
शीतल हवा सी
मन को सहलाती है।
तनहा सफ़र में
साथ मेरे चलती है
मुझको समझाती है।
कंगारूओं के देश में
अपनी उस माँ की
मुझे याद आती है।
- रेखा राजवंशी
१९ मार्च २०१२
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