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अभिव्यक्ति  ३. ११. २००८

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कालिदास सच-सच बतलाना!

 

इंदुमती के मृत्यु -शोक से
अज रोया या तुम रोए थे ?
कालिदास, सच-सच बतलाना!
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृतमिश्रित सूखी समिधा सम
तुमने ही तो दृग धोए थे
कालिदास, सच-सच बतलाना !
रति रोई या तुम रोए थे?
वर्षा -ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा,
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास, सच-सच बतलाना !
पर-पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थक कर औ ' चूर-चूर हो
अमल-धवलगिरि के शिखरों पर
प्रियवर तुम कब तक सोए थे ?
कालिदास, सच-सच बतलाना !
रोया यक्ष कि तुम रोए थे ?

-- नागार्जुन

इस सप्ताह

कालिदास जयंती के अवसर पर-
नागार्जुन

पुनर्पाठ में-
रामधारी सिंह दिनकर

गीतों में-
वीरेंद्र जैन

अंजुमन में
साग़र पालमपुरी

छंदमुक्त में-
वर्तिका नंदा

दिशांतर में-
सिंगापुर से शार्दूला

पिछले सप्ताह
२७ अक्तूबर २००८ के अंक में

गीतों में-
दीवाली की रात में
उन उजालों को नमन
उजियार बहुत हैं
उजाले
दीवाली बन जाएगी

अंजुमन में-
दीवाली हर बरस
न जाने कब हो दीवाली

मुक्तक में-
दीपावली

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