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अनुभूति में डॉ. मधु प्रधान की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
चुपके चुपके
जिंदगी मीठी गजल है
जुगनुओं की तरह
बैठे हैं हम आज अकेले
वो लम्हा

गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्रीत की पाँखुरी
प्यासी हिरनी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुमन जो मन में बसाए
सुलग रही फूलों की घाटी

अंजुमन में-
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
लबों पर मुस्कान

  जेठ की धूप में

जेठ की धूप में पावस के ख्यालों की तरह
गर अंधेरों में रहो भी तो उजालों की तरह

रेशा-रेशा हो बिखर जाते हैं सपने अक्सर
ज़िंदगी सामने होती है सवालों की तरह

अपने चेहरे पे तबस्सुम की रुबा लिख लो
खुद को उलझाओ न उलझे हुये जालों की तरह

दुनिया-ए-एहसास में आने का भी सलीका है
ज़िंदगी बनती है दिलचस्प रिसालों की तरह

अपने वजूद को कुछ इस तरह तराशो 'मधु`
कोई जो नाम तेरा ले तो मिसालों की तरह

२२ नवंबर २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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