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                		गर्म हवाएँ, इत-उत डोलें  
						जीवन में भी आग 
						1 
						सूखे सारे कुएँ पड़े हैं 
						पानी का है टोटा 
						भूखे मरे किसान  
						रुपैया दिन दिन पड़ता छोटा 
						भारी पड़ा जुटाना सबको 
						महँगा आटा- साग 
						1 
						गर्म हवाएँ, इत-उत डोलें  
						जीवन में भी आग 
						1 
						त्यौहारों वाले दिन भी तो 
						आएँगे जाएँगे 
						सीमित आमदनी में कैसे 
						खर्च निभा पाएँगे 
						महँगाई में रुपया डूबा  
						डॉलर पहने पाग 
						1 
						गर्म हवाएँ, इत-उत डोलें  
						जीवन में भी आग 
						1 
						एक तरफ आधार चल रहा 
						दूजी नोट की बंदी 
						दो के बीच गरीब फँस गया 
						जीवन होता छिंदी 
						कैशलेस की चली हवाएँ 
						दुनिया भागमभाग 
						1 
						गर्म हवाएँ, इत-उत 
						डोलें  
						जीवन में भी आग 
						11 
						- सरस्वती माथुर |