अनुभूति मेंM सौरभ
आर्य की रचनाएँ
खेल राजनीति
का
क्यों लाएँ बदलाव हम
मैं लिखूँगा
मेरी प्रयोगशाला
आँसू जो हैं सूख गए
चले हैं हम
होली
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मेरी प्रयोगशाला
ये देखो
मेरी प्रयोगशाला
यहाँ करता हूँ मैं तैयार
शब्दों के जाल
बारूदों के साथ
शब्दों को मिलाकर
बनते है विस्फोटक यहाँ पर
और फिर बाँट दिये जाते हैं
जन जन में ये हथियार
एक नहीं अब अनेक हैं
प्रयोगशालाएँ ऐसी देश भर में
अब न टिक सकेगी
तुम्हारी सरकार
समेट लो अपनी
काली करतूतों की
कारनामों की कहानियाँ
हो चुकी है
जनता होशियार
९ अक्तूबर २००४
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