अनुभूति मेंM सौरभ
आर्य की रचनाएँ
खेल राजनीति
का
क्यों लाएं बदलाव हम
मैं लिखूँगा
मेरी प्रयोगशाला
आँसू जो हैं सूख गए
चले हैं हम
होली
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आँसू जो हैं सूख गए
एक दिन
जब याद आपकी आई
तो जी भर रोया
अगले दिन था
मौसम बदल गया
तब दोस्तो के साथ खेला भी
और जोरों से हँसा भी
दिन नहीं बदलते
किसी के जाने से
सच तो है ये ही
पर जब भी देखता हूँ
खुद को आइने में
तो दिखते है
वे आँसू जो हैं सूख गए
२४ मार्च २००५
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