अनुभूति मेंM सौरभ
आर्य की रचनाएँ
खेल राजनीति
का
क्यों लाएँ बदलाव हम
मैं लिखूँगा
मेरी प्रयोगशाला
आँसू जो हैं सूख गए
चले हैं हम
होली
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चले हैं हम
चले हैं हम
आज यहाँ से
साथ नहीं कल अपना होगा
तुम होगे उधर कहीं
दूर कहीं घर अपना होगा
दौड़ पडे हैं आज खुशी में
कैदी ज्यों छूटा जंजीरों से
पर क्या हमने तुमने सोचा
साथ में कितने रिश्ते नाते टूटे
याद तुम्हें भी आएगी
ये दूरी जब बढ़ जाएगी
आज सताते हम तुम एक दूजे को
कल यादें हमे सताएँगी
९ अक्तूबर २००४
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