अनुभूति मेंM सौरभ
आर्य की रचनाएँ
खेल राजनीति
का
क्यों लाएं बदलाव हम
मैं लिखूँगा
मेरी प्रयोगशाला
आँसू जो हैं सूख गए
चले हैं हम
होली
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होली
होली के रंग से रँगे चेहरे
किसका है ये चेहरा
ये नही पता
पता है बस ये
कि है कोई मदमस्त सा
फटे-पुराने कपडे पहने
है आ रहा कोई
ये गली के आवारा लडके हैं
या है कोई खास
ये नहीं पता
पता है बस ये
कि है कोई उल्लास में
सचमुच
होली जब भी आती है
सब दूरियाँ मिट जाती हैं
फिर दिल से दिल मिल जाते हैं
सब गीत खुशी के गाते हैं
२४ मार्च २००५
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