अनुभूति मेंM सौरभ
आर्य की रचनाएँ
खेल राजनीति
का
क्यों लाएं बदलाव हम
मैं लिखूँगा
मेरी प्रयोगशाला
आँसू जो हैं सूख गए
चले हैं हम
होली
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क्यों लाएँ बदलाव हम
क्यों लाएँ बदलाव हम
जो चलता आ रहा
वो चलता रहे
क्यों लाएँ बदलाव हम
ये परम्परा रही
गंदी ही सही
क्यों लाएँ बदलाव हम
बदलाव जंग छेड़ता है
दिल के रिश्ते तोड़ता है
क्यों लाएँ बदलाव हम
हम ही आगे क्यों बढ़ें
जब लाखों साथ मेरे हैं खडे।
क्यों लाएँ बदलाव हम
अच्छी है ये लकीर
और हम भी ठहरे एक फकीर
२४ मार्च २००५
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