अनुभूति में त्रिलोक सिंह
ठकुरेला की रचनाएँ-
पदों में-
तीन पद
कुंडलिया में-
कुंडलिया (रत्नाकर सबके लिये)
कुंडलिया (धीरे धीरे समय)
कुंडलिया
(अपनी अपनी अहमियत)
गीतों में-
गाँव
प्यास नदी की
मन का उपवन
मन-वृंदावन
सोया
शहर
नए दोहे-
यह जीवन बहुरूपिया
नए दोहे-
दोहे
हाइकु में-
हाइकु सुखद भोर
संकलन में-
गंगा-
गंगाजल है औषधी
पिता की तस्वीर-
पिता
|
|
तीन पद
ऊधो, ऐसी जुगत करी।
सत्य अकिंचन खडा राह में, झूठ की जेब भरी।
छाँह भ्रष्ट के घर आँगन में, कर्म को दोपहरी।
कुलटा को डर नहीं, सती के दुर्दिन, रात डरी।
और सभी कुछ छूटा पीछे, धन की प्रीति खरी।
गाय मरी भूखी, नेता जी निशि-दिन चरत चरी।
'ठकुरेला' गरीब की दुविधा, टारे से न टरी।
पुरस्कार तुम ही पाओगे।
पहले ये बतलाओ प्यारे, भेंट में क्या लाओगे।
सहज नहीं सम्मान जगत में, सौ धक्के खाओगे।
अपने हो तो उपकृत कर दूँ, फिर फिर गुण गाओगे।
पुरस्कार की इतनी महिमा, सहसा छा जाओगे।
अब मौका है सोच-समझ लो, बाद में पछताओगे।
'ठकुरेला' वह दिन बतलाओ, जब मिलने आओगे।
सखी, गई संतों की मति मारी।
इनका मन अब नहीं भजन में, भाये सम्पति सारी।
ब्रह्मचर्य के पाठ और को, खुद को सुंदर नारी।
भिक्षा की अब किसे जरूरत, बाँटें स्वयं उधारी।
कौन तीर्थ को जाये पैदल, साथ अनेक सवारी।
शिष्यों के संग करें तिजारत, सारी माया झारी।
वचनों में मधु सा रस घोलें, मन में रखें दुधारी।
'ठकुरेला' ऐसे संतों से कौन करे अब यारी।
२९ जून २०१५ |