अनुभूति में त्रिलोक सिंह
ठकुरेला की रचनाएँ-
गीतों में-
गाँव
प्यास नदी की
मन का उपवन
मन-वृंदावन
सोया
शहर
नए दोहे-
यह जीवन बहुरूपिया
कुंडलियों में-
कुंडलियाँ
(अपनी अपनी अहमियत)
नए दोहे-
दोहे
हाइकु में-
हाइकु सुखद भोर
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दोहे
खेत में-
खड़े बिजूके खेत में, बनकर पहरेदार।
भोले-भाले डर रहे, चतुर चरें सौ बार।।
बहेलिया और चील में, पनपा गहरा मेल।
कबूतरों के साथ में, खेलें खेल गुलेल।।
जीवन असमंज
समझ गया है मेमना, अब शेरों की चाल।
बिना बात दुहरायेंगे, फिर फिर वही सवाल।।
कौंध रही हैं बिजलियाँ, हालत हैं विपरीत।
मन की कोयल डर रही, कैसे गाये गीत।।
तिनका
दुविधा की गठरी लिये, सीता हुई उदास।
निरपराध को राम ही, भेज रहे वनवास।।
यह गरीब की झोंपड़ी, साँझ खड़ी है मौन।
खाने के लाले यहाँ, दीप जलाये कौन।।
२१ दिसंबर २००९ |