अनुभूति में त्रिलोक सिंह
ठकुरेला की रचनाएँ-
अनुभूति में त्रिलोक सिंह
ठकुरेला की रचनाएँ-
कुंडलिया में-
कुंडलिया (धीरे धीरे समय)
कुंडलिया
(अपनी अपनी अहमियत)
गीतों में-
गाँव
प्यास नदी की
मन का उपवन
मन-वृंदावन
सोया
शहर
नए दोहे-
यह जीवन बहुरूपिया
नए दोहे-
दोहे
हाइकु में-
हाइकु सुखद भोर
संकलन में-
गंगा-
गंगाजल है औषधी
पिता की तस्वीर-
पिता
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कुंडलियाँ
(अपनी अपनी अहमियत)
अपनी अपनी अहमियत, सूई या तलवार।
उपयोगी है भूख में, केवल रोटी चार।।
केवल रोटी चार, नहीं खा सकते सोना ।।
सूई का कुछ काम, न तलवारों से होना ।।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी की माला जपनी ।।
बड़ा हो कि लघुरूप, अहमियत सबकी अपनी ।।
असली नकली की करे, सदा कसौटी जॉंच ।
मालुम होता सहज ही, हीरा है या कॉंच ।।
हीरा है या कांच, देर तक कभी न छलता ।।
कौन मीत, रिपु कौन, समय पर मालुम चलता ।।
‘ठकुरेला’ कविराय, कमर जिसने भी कस ली ।।
हुआ बहुत आसान, जानना नकली असली।।
नहीं समझता मंदमति, समझाओ सौ बार।
मूरख से पाला पडे़, चुप रहने में सार।।
चुप रहने मे सार, कठिन इनको समझाना।।
जब भी जिद ले ठान, हारता सकल जमाना।।
‘ठकुरेला’ कविराय, समय का डंडा बजता ।।
करो कोशिशें लाख, मंदमति नहीं समझता।।
मानव की कीमत तभी जब हो ठीक चरित्र।
दो कौडी का भी नही, बिना महक का इत्र।।
बिना महक का इत्र, पूछ सद्गुण की होती।।
किस मतलब का यार, चमक जो खोये मोती।।
ठकुरेला’ कविराय, गुणों की ही महिमा सब।।
गुण, अवगुण अनुसार असुर सुर, मुनि-गण, मानव।।
८ अगस्त २००९ |