काँव काँव संसद
करे
काँव-काँव संसद करे, जनता हहाकार
कहो 'कान्त' कैसे हटे, अब यह भ्रष्टाचार
महँगाई रावण बनी, शीश दशानन होय
वित्त प्रबन्धन विकट है, देश दिये बहु रोय
बहै पसीना श्रमिक का, बहु उत्पादन होय
नये साल में नवधनिक, निर्धनता सब खोय
नूतन इस नव वर्ष में, भरें भाव सब कोय
घृणा वितृष्णा ना रहे, स्नेह सभी में होय
अलंकार कैसे मिलें, हिये नहीं जब भाव
रसधारा बहती नहीं, जब अवरुद्ध बहाव
१५ सितंबर २०१५