अनुभूति में डॉ रामसनेही लाल
शर्मा 'यायावर' की रचनाएँ-
कुंडलिया में-
आये मेरे गाँव में (पाँच कुंडलिया)
दो नए गीत
मेरी प्यास
गीत का रचाव
दोहों में-
विवेकानंद दोहे (विवेकानंद जयंती के अवसर
पर)
ग्रीष्म के दोहे
अंजुमन में-
कभी खुशी कभी दर्द
दिल में गुलशन आँख में सपना
मन घनश्याम हो गया
गीतों में-
केसर चंदन पानी के दिन
पूछेगी कल मेरी पोती
बाँटते जल चलें
मैं यायावर
लघु प्राण दीप
लड़ते-लड़ते मन हार गया
सुनो अँधेरा
संकलन में- मातृभाषा के प्रति- हिंदी की जय जयकार करें
शुभ दीपावली-जीता दीपक
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आये मेरे गाँव में
(पाँच कुंडलिया)
१.
आये मेरे गाँव में, ये कैसे भूचाल।
खुरपी वाले हाथ ने, ली बन्दूक सँभाल।
ली बन्दूक सँभाल, अदावत हँसती गाती।
रोज सुहानी भोर, अदालत चलकर जाती।
लड़े मेड़ से खेत, लड़ रहे माँ के जाये।
कैसे कैसे हाय, नये परिवर्तन आये।
२.
संबंधों का रस घटा, बढ़ा स्वार्थ का जोर।
यहाँ शोर में मौन है, विकट मौन में शोर।
विकट मौन में शोर, खो गयीं सब पहचानें।
भूले पीड़ा, प्यार, सगा सिक्के को मानें।
नहीं रहा शुभ -काल, स्नेह के अनुबंधों का।
होता नंगा नाच, स्वार्थ के संबंधों का।
३.
बाहर निकलें किस तरह, खोलें घर के द्वार
लिए संटियाँ हाथ में, हवा खड़ी तैयार।
हवा खड़ी तैयार, बना मौसम हत्यारा।
मरी प्रीति की रीति, इसी ने उनको मारा।
काँपे डर से प्यार, मूल्य औ' संवेदन हर।
सिसके सहानुभूति, नहीं अब निकले बाहर।
४.
भूख शहर की बढ़ गयी, सब कुछ लेता खाय।
खेत, गाँव, पगडंडियाँ, भैंस, बैल औ' गाय।
भैंस, बैल औ' गाय, खिलखिलाहट पनघट की।
दादा की फटकार, हँसी भोले नटखट की।
नेम, क्षेम, उल्लास, प्रीति छीनी घर घर की।
चितवन घूँघट छीन, खा गयी भूख शहर की।
५.
पीपरपाँती कट गयी, सूखे कुंज -निकुंज।
यमुना-तट से कट गये, श्याम स्नेह के पुंज।
श्याम स्नेह के पुंज, रो रही सूखी यमुना।
उठें बगूले गर्म, रेत लावा का झरना।
यमुना, कुंज, कदम्ब, कहाँ? पूछेगा नाती।
बाबा हुई विलुप्त, किस तरह पीपरपाँती।
६ मई २०१३
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