विवेकानंद दोहे
(विवेकानंद जयंती के अवसर
पर)
उठो, जगो, आगे बढ़ो, पाओ जीवन-साध्य।
तुमने कहा कि राष्ट्र ही, एकमेव आराध्य।।
साँस-साँस में राष्ट्रहित, शब्द-शब्द
में ज्ञान।
राष्ट्रवेदिका पर किए, अर्पित तन मन प्राण।।
सत्य और संस्कृति हुए, पाकर तुम्हें
महान।
कदम मिलाकर चल पड़े, धर्म और विज्ञान।।
देव संस्कृति का किया, तप-तप कर
उत्थान।
करता है दिककाल भी, ॠषि तेरा जयगान।।
अनथक यात्री ने कभी, लिया नहीं
विश्राम।
दिशा-दिशा के वक्ष पर, लिखा तुम्हारा नाम।।
रोम-रोम पुलकित हुआ, गाकर दिव्य
चरित्र।
जन्म तुम्हें देकर हुई, भारत भूमि पवित्र।।
संत विवेकानंद तुम, शुभ-संस्कृति का
कोष।
गुँजा दिया इस सृष्टि में, भारत का जय घोष।।
16 जनवरी 2007
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