अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में नीरजा द्विवेदी  की रचनाएँ-

गीतों में-
उठो पथिक
ऐ मेरे प्राण बता
तार हिय के छेड़ो न तुम
निशा आगमन
बलिदानी आत्माओं की पीड़ा
विरहिन लगती प्रकृति प्रिया
हे सखि
 

  निशा आगमन

आज चुनरिया श्यामल ओढ़े
रजनी बनकर सजनी आई।
प्रियतम से मिलने को आतुर
हौले से पग धरती आई।
दिनकर प्रिय को आते देखा
प्रिया निशा बहुत सकुचाई।
नत आनन, गालों पर छाई
व्रीड़ा की अद्भुत अरुणाई।

सुन्दरता देखी दिनकर ने
अपनी सब सुध-बुध बिसराई
हतप्रभ रहकर देखा इकटक
हिय ने प्रेम रागिनी गाई।
सजनी को ले अंकपाश में
प्रेमचिह्न अंकित कर डाला।
तब सकुचाई रजनी ने झट
मुख पर नीला घूँघट डाला।

२ फरवरी २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter