अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में नीरजा द्विवेदी  की रचनाएँ-

गीतों में-
उठो पथिक
ऐ मेरे प्राण बता
तार हिय के छेड़ो न तुम
निशा आगमन
बलिदानी आत्माओं की पीड़ा
विरहिन लगती प्रकृति प्रिया
हे सखि
 

  हे सखि!

विस्मृत अतीत के वातायन से,
झाँक रही तुम मेरे झिलमिल।
बाबुल के प्रेमभरे आँगन में,
खेला करतीं जब हम हिल मिल।

विमुक्त फिरा करतीं चिन्ता से,
बन तितली, बगिया में खिलखिल।
पवन झकोरे देती बदरी में,
बरखा बरसा करती तिल-तिल।

पेंग लगातीं हम बैठ के झूले,
सुध-बुध अपनी रहती थी गुल।
लपक-लपक हम तुम चुनरी से,
खाती थीं, लाई गुड़ चिलबिल।

लातीं इमली, अमरुद टिकोरे,
खेला करतीं बचपन में घुलमिल।
बंधन भूली थीं जात-पांत के,
न थी घृणित राजनैतिक हलचल।

अब कहती हो जब तुम मुझसे-
'मैं अछूत, तुम हो बाम्हन कुल'-
हृदय टीसता अति पीड़ा से,
मानवता जब जाती है छल।।

२ फरवरी २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter