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अनुभूति में नईम की रचनाएं-

गीतों में-
अपने हर अस्वस्थ समय को
क्या कहेंगे लोग
करतूतों जैसे ही
काशी साधे नहीं सध रही
किसकी कुशलक्षेम पूछें
खून का आँसू
पानी उछाल के
प्रार्थना गीत
फिर कब आएंगे
महाकाल के इस प्रवाह में
लगने जैसा
शामिल कभी न हो पाया मैं
हम तुम
हो न सके हम

 

शामिल कभी न हो पाया मैं

शामिल कभी न हो पाया मैं,
उत्सव की मादक रून-झुन में
जानबूझ कर हुआ नहीं मैं -
परम्परित सावन, फागुन में

क्या कहियेगा मेरे इस खूसठ स्वभाव को?
भीड़-भाड़, मेले-ठेले से सहज भाव मेरे दुराव को?
जब से होश संभाला तबसे,
खड़ा हुआ हूं पैरों अपने
अनायास आये तो आये
देखे नहीं जानकर सपने,
हुआ हताहत अपनों से पर
गया नहीं मैं कहीं शरण में

सच की कसमें खाते खाते-
ज़्यादातर जी लिया झूठ में
आप हरापन खोज रहे पर
क्या पायेंगे महज ठूंठ में?
मुझे निरर्थक खोज रहे हैं
एकलव्य या किसी करण में
शामिक कभी न हो पाऊंगा -
किसी जाति में या कि वरण में

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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