अनुभूति में
नईम की रचनाएं-
गीतों में-
अपने हर
अस्वस्थ समय को
क्या
कहेंगे लोग
करतूतों जैसे
ही
काशी साधे नहीं सध रही
किसकी कुशलक्षेम पूछें
खून का आँसू
पानी उछाल के
प्रार्थना गीत
फिर कब आएंगे
महाकाल के इस प्रवाह में
लगने जैसा
शामिल कभी न हो पाया मैं
हम तुम
हो न सके हम
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क्या कहेंगे लोग
क्या कहेंगे लोग,
कहने को बचा ही क्या?
यदि नहीं हमने,
तो उनने भी रचा ही क्या?
उंगलियां हम पर उठाये-कहें तो कहते रहें वे,
फिर भले ही पड़ौसों में रहें तो रहते रहे वे।
परखने में आज तक,
उनको जंचा ही क्या?
हैं कि जब मंुह में जुबानें, चलेंगी ही।
कड़ाही चूल्हों-चढ़ी कुछ तलेंगी ही।
मु तों से पेट में-
उनके पचा ही क्या?
कहीं हल्दी, कहीं चंदन, कहीं कालिख,
उतारू हैं ठोकने को दोस्त दुश्मन सभी नालिश
इशारों पर आज तक
अपने नचा ही क्या?
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