करतूतों जैसे ही
करतूतों जैसे ही
सारे काम हो गये
किष्किंधा में लगता -
अपने राम खो गये
बालि और सुग्रीवों से कुछ -
कहा न जाये,
न्याय मांगते -
शबरी, शम्बूकों के जाये
करे धरे सब हवन, होम भी
हत्या और हराम हो गये
स्वप्नों सूझों की जड़ में ही -
दिग्गज मठ्ठा डाल रहे हैं,
और अस्मिता पर अपनी ही
कीचड़ लोग उछाल रहे हैं
देश देश के क्षत्रप मिलकर -
आज केन्द्र से बाम हो गये
देनदारियों का मत पूछो,
डेवढ़ी बैठेंगी आवक से
फिर भी पड़े हैं पीछे
राम हमारे, मृग शावक के
वर्तमान रिस रहा सिरे से -
गत, आगत बदनाम हो गये
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