हम तुम
हम तुम
कोशिश ही करते रह गये जनम भर,
लेकिन वो
जाने, क्यों, कैसे -
रातों-रात महान हो गये?
नये संस्करण में
किताब के -
शब्द असम्भव शेष नहीं अब,
कदम-कदम
सीढ़ी-दर-सीढ़ी
चलने वाला देश नहीं अब
बिना बात के मरते ही रह गये जनम भर
अनचाहे इनको आसंदी,
उनके लिए मचान हो गये
परम्पराओं के क्या
मानी,
देश-काल हो गये असंगत
श्राद्धपक्ष ही नहीं साल भर
कौवे जीम रहे हैं पंगत
हम तुम
हुक्के भरते ही रह गये जनम भर
कोढ़ खाज से गलित आचरण -
उनके आज प्रमाण हो गये
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