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अनुभूति में नईम की रचनाएं-

गीतों में-
अपने हर अस्वस्थ समय को
क्या कहेंगे लोग
करतूतों जैसे ही
काशी साधे नहीं सध रही
किसकी कुशलक्षेम पूछें
खून का आँसू
पानी उछाल के
प्रार्थना गीत
फिर कब आएंगे
महाकाल के इस प्रवाह में
लगने जैसा
शामिल कभी न हो पाया मैं
हम तुम
हो न सके हम

 

लगने जैसा
लगने जैसा
लिखा नहीं कुछ
बहुत दिनों से

कर न सका स्वायत्त ठीक से कभी
स्वयं की ही भाषा को,
मूर्त न कर पाया अनुभूते क्षण की -
आशा अभिलाषा को
कोरे थान सफेद खादी के
पड़े रह गये धुले नांद में,
रंगने जैसा
रंगा नहीं कुछ
बहुत दिनों से

अपराधी होकर मुतलक मैं,
रहा नहीं दो दिन कारा में
जीवन जिया न हमने औघट -
या गहरे धंसकर धारा में
मरने जैसा
मरा नहीं कुछ
बहुत दिनों से

बदल गये हैं अब मुहावरे -
जीवन के ही नहीं मौत के
अर्थ नहीं रह गये थे वही अब
पति, पत्नी के याकि सौत के
रखे रह गए सब मनसूबे -
लिखने जैसा -
लगा नहीं कुछ बहुत दिनों से

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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