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अनुभूति में मधु शुक्ला की रचनाएँ-

अंजुमन में-
एक तरफ
गजल कहूँ
झील नदिया खेत जंगल
बहुत मुश्किल
सोचती चिड़िया

छंदमुक्त में-
अनछुआ ही रहा
जाने कहाँ छिप गयी वो
पानी की जंग
मेरे इर्दगिर्द मेरे आसपास
यादों की चील

 

झील, नदिया, खेत, जंगल

झील, नदिया, खेत, जंगल हो गये बादल
ज़र्द आँखों में हरापन बो गये बादल

ख़ूब उमड़े, ख़ूब घुमड़े, पर नहीं बरसे
और जब बरसे धरा को धो गये बादल

हो गये तन-मन लुटा कर जब बहुत हल्के
रुई से बिखरे हवा में खो गये बादल

लौट कर आए गगन से जब थके हारे
सिर टिका कर पर्वतों पर सो गये बादल

जब कभी पूछी कहानी आग - पानी की
मुस्कुराए, फिर छलक कर रो गये बादल

इक पपीहे की अबूझी प्रीति की ख़ातिर
दर्द के कितने समंदर ढो गये बादल

कह गये थे लौटने को साथ मौसम के
फिर कहाँ लौटे यहाँ से जो गये बादल

१ जुलाई २०२३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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