अनुभूति में
मधु शुक्ला की रचनाएँ-
अंजुमन में-
एक तरफ
गजल कहूँ
झील नदिया खेत जंगल
बहुत मुश्किल
सोचती चिड़िया
छंदमुक्त में-
अनछुआ ही रहा
जाने कहाँ छिप गयी वो
पानी की जंग
मेरे इर्दगिर्द मेरे आसपास
यादों की चील
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सोचती चिड़िया
बैठ खिड़की पर अकेली सोचती चिड़िया
नीड़ का कोई ठिकाना खोजती चिड़िया
पोछ कर आँसू, भुलाकर ज़ख़्म काँटों के
आस के तिनके दुबारा जोड़ती चिड़िया
हल नहीं मिलता कोई जब भी सवालों का
चिड़चिड़ा कर पंख अपने नोचती चिड़िया
उड़ गये साथी कहाँ वो आसमानों के
खिड़कियाँ यादों की रह-रह खोलती चिड़िया
छोड़ कर उड़ना, फुदकना, चहचहाना अब
बैठ गुमसुम पंख अपने तोलती चिड़िया
तिर रही है पुतलियों में एक दहशत सी
मौन रहकर भी बहुत कुछ बोलती चिड़िया
धूप, छाया, फूल, ख़ुशबू और मौसम के
संग मीठा एक रिश्ता जोड़ती चिड़िया
देखकर यह बेरुख़ी आँगन - मुँडेरों की
रुख़ उड़ानों का अचानक मोड़ती चिड़िया
१ जुलाई २०२३ |