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अनुभूति में मधु शुक्ला की रचनाएँ-

अंजुमन में-
एक तरफ
गजल कहूँ
झील नदिया खेत जंगल
बहुत मुश्किल
सोचती चिड़िया

छंदमुक्त में-
अनछुआ ही रहा
जाने कहाँ छिप गयी वो
पानी की जंग
मेरे इर्दगिर्द मेरे आसपास
यादों की चील

 

बहुत मुश्किल

छिपाना भी बहुत मुश्किल, दिखाना भी बहुत मुश्किल
तुम्हारी याद को दिल से, भुलाना भी बहुत मुश्किल

कई अशआर काग़ज़ पर, लिखे हैं और फाड़े हैं
कि दिल का दर्द ग़ज़लों में, सुनाना भी बहुत मुश्किल

हवाएँ अब भी लाती हैं तुम्हारी ख़ुशबुओं के ख़त
मगर अहसास की कलियाँ खिलाना भी बहुत मुश्किल

इधर हैं बंदिशें ख़ुद की उधर पहरे ज़माने के
मिलन के ख़्वाब ऐसे में सजाना भी बहुत मुश्किल

मिले फ़ुर्सत तो पढ़ लेना कभी मेरी कहानी भी
जो गुज़री है इधर दिल पर बताना भी बहुत मुश्किल

कमी कोई न थी यूँ तो हमारी कोशिशों में पर
हथेली की लकीरों को मिटाना भी बहुत मुश्किल

मिले हमदर्द ही अक्सर सफ़र में ज़िंदगानी के
मगर अहसान इस-उस का उठाना भी बहुत मुश्किल

बहुत आसान है सच को छुपा लेना ज़माने से
है आईना मगर ख़ुद को दिखाना भी बहुत मुश्किल

१ जुलाई २०२३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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