अनुभूति में
मधु प्रसाद की अन्य रचनाएँ-
नए गीतों में-
जैसे श्याम घटाएँ
दिन कपूर बन
सुरमई सपने
ठगे से रह गए
गीतों में-
मन की विपदा
उलझन
रोशनी की कामना
संकलन में-
सावन
के पलछिन
|
|
रोशनी की कामना
रोशनी के पाँव छूकर
लौट आई कामनाएँ
बाँसुरी का स्वर बनी हैं
नव प्रणय की याचनाएँ।
कौन सहला कर गया है
अमलतासी छाँव को
रेत के टीले बनाते
आँधियों के गाँव को
जी पड़े औंधे दिवस सब
चल पड़ी संभावनाएँ।
ओस बनकर बिखरती हूँ
पिघलती हूँ काँच-सी
बर्फ़ कैसे हो सकूँगी
दहकती हूँ आँच-सी
भूल जाने को कहो मत
बन चुकी अवधारणाएँ।
छोड़कर सपने पुरातन
समय निर्भय हो गया
गीत, सुर, लय, ताल, रस से
आज परिचय हो गया
रास्ता तकने लगी हैं
अनछुई संवेदनाएँ।
१६ अप्रैल २००५ |