अनुभूति में
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जैसे श्याम घटाएँ
जैसे श्याम घटाएँ झाँके
सूने उपवन में
तुम आ जाओ आज
हमारे मन के आँगन में।
तार-तार बजने
लगता है
स्वर की आहट है।
ढोलक लेकर मनवा नाचे
तन बंसीवट है।
मेघ मल्हार पुकार रहा है।
देख मधुवन में
आँखों में ढलने लगते हैं
सपने सुखदाई।
अंतस में गहरी होती है
तन की तरूणाई।
किसने आग लगा दी है
इस चंदन के वन में
मरूस्थल में जैसे फूलों का
मौसम आया है।
हँसता-हँसता सावन भी
अब कुछ शरमाया है।
घूँघट के पट खोले ऋतुएँ
सिहरे बंधन में।
२१ फरवरी २०११
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