मेघ आए
बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाज़े खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए
बडे बन-ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूँघट सरके
मेघ आए
बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढे पीपल ने आगे बढ़ जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल, लाया पानी परात भर के
मेघ आए
बडे बन-ठन के सँवर के।
क्षितिज-अटारी गहराई दामिनी दमकी,
'क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की',
बाँधा टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके
मेघ आए
बड़े बन-ठन के सँवर के।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
17 अगस्त 2005 |