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कुछ आगजनी, कुछ राहजनी
कुछ आगजनी, कुछ राहजनी
अब दिन में ये होते आएँ
यदि चमन बचाना है भाई, उल्लू न बसेरा कर पाएँ
कुछ शाखों की कच्ची कलियाँ- महंगाई ने हैं कस डाली
मासूम हंसी, आचारहीन नागिन ने ऐसी डस डालीं
उनकी बीती का मैं श्रोता, बीते तो आँखें पथराएँ
है डाल-डाल विष बेल व्याप्त रिश्वत दल्ला ठगिआई की
बिक सके द्रव्य के मोल सदृश उस यौवन की अंगड़ाई की
चुप रह कब तक ये देखोगे- लज्जा न तमाशा – बन जाएँ
क्या करवट बदली है युग ने, नृप एक टके में बिक जाए
जो सही राह पर चले बाप सुत के सिर आरी चलवाए
इन शंकाओं के जालों में कोई तो समाधान पाएँ
यदि रहे एकजुट बंधु सुनो, विजयी निश्चय बन जाओगे
यदि चाहा तो उल्लू को तुम झटके में मार गिराओगे
उन मूलों में मट्ठा डालें - जिनमें ज़हरीले-फन पाएँ
चिड़िया के घर अब कैद न हो - भाई जंगल का राजा
लासा के लालच में आगे तरकारी भाव न हो खाजा
श्रम की शस्य उगाएँ - दिक् को सौरभ से भर जाएँ
२४ नवंबर २००८ |