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अनुभूति में क्षेत्रपाल शर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
गीत सुलह का गाया जाए
जब भी बही हवा पुरवाई
साँझ सकारे
हँसी तुम्हारी चंदा जैसी

गीतों में-
कुछ आगजनी कुछ राहजनी
तेरी याद जनम भर आए
पहलेवाली बात नहीं है
बदल जाए मौसम

 

जब भी बही हवा पुरवाई

जब भी बही हवा पुरवाई
कोई चोट उभर ही आई

ऐसा नहीं हुआ है जल से,
बादल बूँद-बूँद को तरसे
तपती धरती की पीड़ा को
बादल सह जाए बिन बरसे
जल बरसा लो पानी, पानी
जब भी चिड़िया धूल नहाई

तुम पीड़ा ही लेकर आती
दर्द नहीं थे मीठे पाए
हर पुकार पर कंठ सूखता
नद-ऐसा प्यासा लौटाए
मन की तृषा नहीं बुझ पाई,
जब नयनों में याद नहाई

गीत बेसुरा हो जाएगा
तुम रोना मत सिखलाओ
भले रूठ ही जाना मुझ से
पर अब थोड़ा मुसकाओ
प्यार भरी किलकारी फूटे,
पीड़ा की जब हो अगुआई

२९ जून २००९

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