गीत सुलह का गाया
जाए बहुत दिनों से रूठे हैं जो
उनको आज मनाया जाए
गीत सुलह का गाया जाए । बहुत
दूर का हुआ दोस्त,
पर पाँव पड़ोसी दुश्मन
क्या पड़ौस है सिर्फ नाम का
रहे हमेशा ऐसी अनबन
झक-झक, बक-बक, शक का जड़ से
जहर निकाला जाए। नित की देखभाल
से, बिल्कुल
चीजें हरी-भरी रहती हैं
बड़े भरोसे की वे बातें
जो बातें आखें कहती हैं
आओ हँसें करें दो बातें
मन से मैल निकाला जाए। हर्ष
देखकर होता है, जब
अकुलाहट ठंडी होती
मेरे लिए बहे हैं जिनकी
आँखों से अविरल मोती
नहीं कभी कुछ कहा न माँगा
उनको अब अपनाया जाए।
बहुत गिला शिकवा है मुझसे
मिलने में भी आनाकानी
कैसे करूँ स्वयं को प्रस्तुत
मन में भारी खींचातानी
सासों से हम हुए परीक्षित
सोना क्यों पिघलाया जाए। आँखो
के जो तारे थे पर
आज निपट बेगाने हैं
बात जरा सी पर रूठे थे
अब भी वे कब माने हैं
लो अब हम ही झुकते हैं,
बिछड़ा, गले लगाया जाए
गीत सुलह का गाया जाए। २९ जून २००९ |