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अनुभूति में कल्पना मनोरमा 'कल्प' की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कविता
तुम्हारे बाद
तुलसी के बीज
घोंसले
लौटती हूँ

दोहों में-
गंगा की अवतार माँ

गीतों में-
दीपक को तम में
बादल आया गाँव में
बोल दिये कानों में
मत बाँधो दरिया का पानी
मन से मन का मिलना

संकलन में-
देवदार- देवदार के झरोखे से
रक्षाबंधन- रीत प्रीत की
शिरीष- वन शिरीष मुस्काए

शुभ दीपावली- दीप बहारों के
होली है- चलो वसंत मनाएँ

 

तुम्हारे बाद

जैसे धरती में होता है
थोड़ा -सा आकाश
आकाश में थोड़ी-सी
धरती
वैसे ही
हर स्त्री के भीतर होता है
टुकड़ा भर पुरुष
हर पुरुष के भीतर होती है
टुकड़ा भर स्त्री

इस बात पर पक्का
यक़ीन कर

हे स्त्री !
तुम खिलना फूल भर
चलना रास्ता भर
बहना पूरी धारा भर
उगना सूर्य भर

क्योंकि जब भी
आये वक्त तुम्हारा होने को
अस्त
तो तुम्हारे अपने सो सकें
नींद भर
तुम्हारे बाद भी।

सितंबर २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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