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देवदार के झरोखे से
 

हिमालय के
उत्तुंग शिखरों पर
कर्पूरी बर्फ की परतों में
टाँक दिये हैं किसी ने,
देवदार के हरे-हरे सुंदर नगीने नुमा वृक्ष
जिन पर विमोहित हो
लिपट जाती हैं प्रतिदिन प्रभाती
स्वर्ण परियाँ।

पर्वत मालाओं की विशुद्ध
नीरवता को
गोदी में ले झुलाता है देवदार
तो पवन की सीटियों पर
नाच उठता है
घाटी की आँखों में
चंचल जल।

और जब सम्हाल लेता है
देवदार अपनी लंबी-लंबी भुजा-पाश में
वन कन्या के कुसुमित आँचल को
तो बादलों के नरम-नरम फाहे
अटक जाते है आकर
देवदार के शीर्ष पर
कुछ इस तरह
कि लगता है मानो
झुक आया हो आसमान धरती पर
देखने अनछुई प्रकृति कामनी के
रूप सौंदर्य को देवदार के झरोखे से।

- कल्पना मनोरमा   
 
१५ मई २०
१६

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