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अनुभूति में हरीश निगम
की रचनाएँ—

नए गीतों में-
दुख नदी भर
बादल लिखना
बिखरे हैं पर
फुनगियों तक बेल
मँझधार में रहे

शिशु गीतों में—
धूप की मिठाई
पंख दिला दो ना

गीतों में—
इस नगर से
ऊँघता बैठा शहर
कहाँ जाएँ
चाँदनी सिसकी
ज़िंदगी की बात

पनघटों पर धूल
शेष हैं परछाइयाँ

संकलन में—
वसंती हवा – फागुन में
ज्योतिपर्व – फुलझड़ियाँ लिख देतीं

 

ऊँघता बैठा शहर

धूप ने
ढाया कहर

फूल घायल
ताल सूखे
हैं हवा के बोल रूखे,
बो रहा मौसम
ज़हर

धूप ने
ढाया कहर

हर गली
हर मोड़ धोखे
बंद कर सारे झरोखे,
ऊँघता बैठा
शहर

धूप ने
ढाया कहर

१४ अप्रैल २००८

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