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अनुभूति में हरीश निगम
की रचनाएँ—

नए गीतों में-
दुख नदी भर
बादल लिखना
बिखरे हैं पर
फुनगियों तक बेल
मँझधार में रहे

शिशु गीतों में—
धूप की मिठाई
पंख दिला दो ना

गीतों में—
इस नगर से
ऊँघता बैठा शहर
कहाँ जाएँ
चाँदनी सिसकी
ज़िंदगी की बात

पनघटों पर धूल
शेष हैं परछाइयाँ

संकलन में—
वसंती हवा – फागुन में
ज्योतिपर्व – फुलझड़ियाँ लिख देतीं

  चाँदनी सिसकी

रात भर जागे
सिरहाने नींद धर के।

एक पल को भी नहीं
पतझड़ थमा
आँख में होते रहे
बीहड़ जमा

याद ने किस्से सुनाए
खंडहर के।

चाँदनी सिसकी
कोई सपना दुखा
सिलसिला हम पर
खरोंचों का झुका

लग रहा,
आए बबूलों से गुज़र के।

९ अक्तूबर २००

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