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OOधूप की मिठाई
धूप की
मिठाई के दिन
कंबल के दिन,
रजाई के दिन,
फिर आए धूप की
मिठाई के दिन!
मफलर की
धाक जमी
चले गए छाते,
अब स्वेटर-कोट यहाँ
फिरते इतराते।
बूँदों का खेल खतम
कुहरे की बारी,
थर-थर-थर काँपने की
सबको बीमारी।
सिगड़ी
के दिन,
सिंकाई के दिन,
फिर आए आग की
बड़ाई के दिन
१४
अप्रैल २००८ |