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अनुभूति में धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई

गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास

 
 

मन का है विश्वास

मन का है विश्वास तुम्हीं से
मेरी जीवित आस तुम्ही से

मुझ पर हो उपकार सरीखी
अम्मा के व्यवहार सरीखी
दीप तुम्हीं हो दीवाली की
होली के त्यौहार सरीखी
सारा है उल्लास तुम्हीं से

फूलों के आकार सरीखी
लगती हो गुलनार सरीखी
उपवन की सब खुश्बू तुममें
तुम जूही कचनार सरीखी
सारा है मधुमास तुम्हीं से

सब यारों के यार सरीखी
तुम ताजे अखबार सरीखी
शीतल मंद हवाओं सी तुम
सावन की बौछार सरीखी
मिटती है हर प्यास तुम्हीं से

सीता के परिहार सरीखी
गीता के उद्गार सरीखी
निर्भर मेरी दुनिया तुम पर
दिल की हो आधार सरीखी
होठों का है हास तुम्ही से

ईश्वर के उपहार सरीखी
नइया की पतवार सरीखी
प्रेरक हो इन प्राणों की तुम
जीवन का हो सार सरीखी
मेरी हर इक साँस तुम्हीं से

२६ जनवरी २०१५

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