अनुभूति में
धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई
गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास
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जब जब घर आता
मैं
जब जब घर आता मै अपने
दिखता बहुत उदास
चौखट करने लगती मेरी
सुधियों से परिहास
नीम निहारे मुझे एकटक
पूछे कई सवाल
क्योंकर मेरी याद न आती
इतने इतने साल
आये हो तो मत जाना अब
तुमसे है अरदास
देख मुझे बूढ़ी दीवारें
हो जाती हैँ दंग
राख दौड़कर पुरखों की भी
लग जाती है अंग
कुर्सी चलकर बाबू जी की
आ जाती है पास
अलमारी की सभी किताबें
करने लगतीं बात
अम्मा की सब मीठी बातें
कह जाती है रात
बाबा दादी और बुआ का
होता है आभास
बारादरी रसोई आँगन
बतियाते सब खूब
और बताते कैसे निकली
फर्श फोड़कर दूब
बैठ रुआँसा कहे ओसारा
यहीं करो अब वास
२६ जनवरी २०१५
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