अनुभूति में
धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई
गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास
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भाग रही है
भाग रही है बचती
बचती
दूर तलक है आग
देख भयावह स्वप्न रात मेँ
अक्सर जाती जाग
भाग्य छिपा है अँधियारे मेँ
हूए न पीले हाथ
काट रही है भरी जवानी
भारी मन के साथ
उस पर रोज खोदता गंदा
घर के पीछे काग
जब जब चले मंद पुरवाई
सिसके उसकी प्रीत
ढ़ूँढ़ निकाला था श्यामू ने
नथुनी मेँ संगीत
पर सागर मेँ डूब गया है
उसका भी अनुराग
कैसे भला कली मुस्काये
करते भौंरे तंग
अपना अपना राग छेड़ते
लगना चाहें अंग
ताके झाँकें कीट पतंगे
बिन माली का बाग
अगल बगल की सखियाँ सारी
खेल रही है रंग
पर जीने की खातिर जुगुरी
सोच रही है ढँग
बरस रहा अँखियोँ से सावन
कैसे गाये फाग
२६ जनवरी २०१५
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