अनुभूति में
धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई
गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास |
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लौट शहर
से आते भाई
लौट शहर से आते भाई
कुछ तो फर्ज निभाते भाई
चाचा की गाँठों में पीड़ा
रोज बहुत ही होती है
चाची भी है दुख की मारी
बैठ अकेले रोती है
छूट गया है खाना पीना
आकर दवा कराते भाई
पहन चूड़ियाँ लीँ तुमने या
मुँह पे कालिख पोत लिया
जबरन उसने खेत तुम्हारा
पूरब वाला जोत लिया
आते तुम इस कलुआ को हम
मिलकर सबक सिखाते भाई
रामलाल की बेटी सुगवा
उसकी ठनी सगाई है
जेठ महीने की दशमी को
निश्चित हुई विदाई है
पूछ रही थी हाल तुम्हारा
उससे मिलकर जाते भाई
इधर हमारे बप्पा भी तो
इस दुनिया से चले गये
तीरथ व्रत सारे कर डाले
चलते फिरते भले गये
दिल की थी बीमारी पर वे
हरदम रहे छुपाते भाई
बात नहीं कोई चिन्ता की
देखभाल कर लेता हूँ
गाय भैँस को सानी भूसा
पानी तक भर देता हूँ
और ठीक पर तुम चल देना
फौरन खत को पाते भाई
१ मई २०१६
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