अनुभूति में
धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई
गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास |
|
बेशर्म
आँसू
जानते सब धर्म आँसू
वेदना के मर्म आँसू
चाँद पर हैं ख्वाब सारे
हम खड़े फुटपाथ पर
खीँचते हैँ बस लकीरेँ
रोज अपने हाथ पर
क्या करे ये जिन्दगी भी
आँख के हैँ कर्म आँसू
जानते सब धर्म आँसू
वेदना के मर्म आँसू
आज वर्षोँ बाद उनकी
याद है आई हमें
फिर वही मंजर दिखाने
चाँदनी लाई हमें
सोचकर ही यों उन्हेँ अब
बह चले हैँ गर्म आँसू
जानते सब धर्म आँसू
वेदना के मर्म आँसू
साथ थे जो लोग अपने
छोड़ वे भी जा रहे
गीत में हम दर्द भरकर
सिर्फ बैठे गा रहे
रोज लेते हैँ मजे बस
छोड़कर सब शर्म आँसू
जानते सब धर्म आँसू
वेदना के मर्म आँसू
रोज ही इनको बहाते
रोज ही हम पी रहे
बस इन्हीं के साथ रहकर
जिन्दगी हम जी रहे
पत्थरोँ के बीच रहकर
हो गये बेशर्म आँसू
जानते सब धर्म आँसू
वेदना के मर्म आँसू
१ मई
२०१६
|