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अनुभूति में धीरज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
कैसे मैं पैबंद लगाऊँ
धूप जिंदगी
बेशर्म आँसू
मुझको नींद नहीं आती माँ
लौट शहर से आते भाई

गीतों में-
जब जब घर आता मैं
दाल खौलती
पल भर ठहरो
भाग रही है
मन का है विश्वास

 
 

दाल खौलती

दाल खौलती है चूल्हे में
जले पतीली आग सखी
फटे हृदय का हाल न पूछो
रही बैठकर ताग सखी

चिन्तनीय है दशा बहुत ही
कौन कौन सी कथा कहूँ
कैसे भला रहे अब कोई
कौन कौन सी व्यथा कहूँ
साजन भी परदेश गये हैँ
मुझे छोड़कर भाग सखी

देख मुझे बस हँसे वेदना
नयनों में जल ही जल है
यज्ञ सुखों का कर पाना अब
दण्डक वन में मुश्किल है
मँहगाई की सोई डायन
गयी आजकल जाग सखी

बदली बदली हवा गाँव की
बदले सभी नजारे हैँ
सेठ बने हैँ गिद्ध सभी अब
एक हमीं बंजारे हैँ
चील खेलती रंग यहाँ पर
कौए गाते फाग सखी

यहाँ पहुँच से बिल्कुल बाहर
आलू का है दाम हुआ
सूखे लहसुन अरमानों के
और प्याज बदनाम हुआ
आसमान में रोज खोंटती
बस बथुए का साग सखी

२६ जनवरी २०१५

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