राजा रानी बैठ
झरोखे राजा रानी बैठ
झरोखे
मुजरा लेते हैं।
लोहे का फाटक है
बाहर पहरेदारी है।
आदमखोर 'बाघ'
आखेटक की लाचारी है
राजा उन्हें दुधमुँहों वाला
चारा देते हैं।
रानी अपने केश,
नहीं धोती है, पानी से।
'गिलोटिन' फरमान लिए
आया रजधानी से।
नाविक डरे डरे बैठे हैं
नाव, न, खेते हैं।
राजा की आदतें न बदलीं
राजा बदल रहे।
जो सिंहासन चढ़ा उसी को
'बघ नख' निकल रहे।
राजा के, 'मेमने' नहीं,
'भेड़िए', चहेते हैं।
२५ जनवरी २०१० |