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अनुभूति में अवध बिहारी श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नए गीतों में-
ऐसी पछुआ हवा चली
बेचैनी का मौर
राजा रानी बैठ झरोखे
सिंहासन
 

गीतों में-
दुख का बेटा
बरस रही वस्तुएँ
बादल मत आना इस देश
मंडी चले कबीर
मैके की याद
लड़कियाँ

 

  राजा रानी बैठ झरोखे

राजा रानी बैठ झरोखे
मुजरा लेते हैं।

लोहे का फाटक है
बाहर पहरेदारी है।
आदमखोर 'बाघ'
आखेटक की लाचारी है

राजा उन्हें दुधमुँहों वाला
चारा देते हैं।

रानी अपने केश,
नहीं धोती है, पानी से।
'गिलोटिन' फरमान लिए
आया रजधानी से।

नाविक डरे डरे बैठे हैं
नाव, न, खेते हैं।

राजा की आदतें न बदलीं
राजा बदल रहे।
जो सिंहासन चढ़ा उसी को
'बघ नख' निकल रहे।

राजा के, 'मेमने' नहीं,
'भेड़िए', चहेते हैं।

२५ जनवरी २०१०

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