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अनुभूति में अवध बिहारी श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नए गीतों में-
ऐसी पछुआ हवा चली
बेचैनी का मौर
राजा रानी बैठ झरोखे
सिंहासन
 

गीतों में-
दुख का बेटा
बरस रही वस्तुएँ
बादल मत आना इस देश
मंडी चले कबीर
मैके की याद
लड़कियाँ

 

 

मंडी चले कबीर

कपड़ा बुनकर थैला लेकर
मंडी चले कबीर।

जोड़ रहे हैं रस्ते भर वे
लगे सूत का दाम।
ताना, बाना, और बुनाई
बीच कहाँ विश्राम।
कम से कम इतनी लागत
तो पाने हेतु अधीर।

माँस देखकर यहाँ कबीरों पर
मंड़राती चील।
तैर नहीं सकते आगे है
शैवालों की झील।
आग नहीं, आँखों में तिरता
हैं चूल्हे का नीर।

कोई नहीं तिजोरी खोले
होती जाती शाम।
उन्हें पता है कब बेचेंगे
औने पौने दाम।
रोटी और नमक थैलों को
बाज़ारों को खीर।

१८ अगस्त २००८

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