बरस रही वस्तुएँ
बरस रहीं वस्तुएँ मची हैं
भागम-भाग उठाने की।
बाबा, दादी, चाचा चाची
बड़ी बहन बूआ ताई।
अपनी-अपनी उमर जी चुके
भावुकता छोड़ो भाई।
बाज़ारों में मार-काट है
बड़ी लकीर मिटाने की।
पल्टू ने पक्का बनवाया
सोन नदी में रेल गिरी।
सरजू अब उदास बैठे हैं
मेरी माँ क्यों नहीं मरी।
बारी है अबकी दंगों में
माँ को पार लगाने की।
अमरीका से फ़ोन कभी तो
सुन लें पोते की बोली।
दो प्रेतों के राजमहल में
कैसी दीवाली होली।
क्यों जोड़ी क्यों, क्यों, क्यों जोड़ी
सुविधा राजघराने की।
१८ अगस्त २००८
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