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अनुभूति में अवध बिहारी श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नए गीतों में-
ऐसी पछुआ हवा चली
बेचैनी का मौर
राजा रानी बैठ झरोखे
सिंहासन
 

गीतों में-
दुख का बेटा
बरस रही वस्तुएँ
बादल मत आना इस देश
मंडी चले कबीर
मैके की याद
लड़कियाँ

 

  ऐसी पछुआ हवा चली

ऐसी पछुआ चली, इंद्रियाँ
अंतर्मुख हुईं।
'बाजों के चंगुल में चिड़िया'
अद्भुत दृश्य लगे।
'आँख बचाकर' खून लाँघकर
भाई बंधु भगे।

बाढ़ देखने उड़ीं, सुरक्षित
आँखें, सुखी हुईं।

पाठ हुई, हर खबर भयानक,
अब अखबारों में।
अस्पताल अंधे होकर
चलते गलियारों में।

नोच रहे हैं गिद्ध, अधमरी
लाशें, रखीं हुईं।

ठठरी के कंधों पर
राजा बैठे रक्त सने।
चलो कहीं 'खा' 'पीकर'
सोयें, कौन कबीर बने।

कालजयी कविताएँ भी अब
सूरजमुखी हुईं।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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