दुःख का बेटा
मैं 'दुःख' का 'बेटा' हूँ,
'
सहना' बहन हमारी है
'गुस्सा' छोटा भाई, '
धीरज' माँ का आँचल है।
बिन कमरों का घर है मेरा
फैला आँगन है।
बाबू का जो बहा पसीना
उसकी सीलन है।
फटी गंजियाँ महक रही हैं
रहना मुश्किल है।
बूढ़ी दादी 'भूख' अभी तक
सोई है घर में।
विधवा बूआ चिट्ठी लिखती
घर में मंगल है।
हाथी का बल था पुरखों में
चारे से हारे।
राजपुरोहित ने पोथी के
विष देकर मारे।
कौन बताए
राजा के घर में ही
जंगल है।
१८ अगस्त २००८
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