सिलसिला ये दोस्ती का
सिलसिला ये दोस्ती का हादसा जैसा लगे
फिर तेरा हर लफ़्ज़ मुझको क्यों दुआ जैसा लगे।
बस्तियाँ जिसने जलाई मज़हबों
के नाम पर
मज़हबों से शख़्स वो इकदम जुदा जैसा लगे।
इक परिंदा भूल से क्या आ गया था
एक दिन
अब परिंदों को मेरा घर घोंसला जैसा लगे
घंटियों की भाँति जब बजने लगें
ख़ोमोशियाँ
घंटियों का शोर क्यों न जलजला जैसा लगे।
बंद कमरे की उमस में छिपकली को
देखकर
ज़िंदगी का ये सफ़र इक हौसला जैसा लगे।
७ सितंबर २००९ |