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अनुभूति में डॉ. अश्वघोष की रचनाएँ

अंजुमन में-
जो भी सपना
रफ़्ता रफ़्ता
रोज़मर्रा
सिलसिला ये दोस्ती का

छंदमुक्त में-
अभी तो लड़ना है
आज भी
शब्दों की किरचें
सड़क पर तारकोल
सदियों से भूखी औरत
सोच रहा है दिन

गीतों में—
जल नहीं है
तुमसे मिलके
लाजवंती धारणाएँ
संसद के गलियारे

संकलन में-
हिंदी की 100 सर्वश्रेष्ठ प्रेम कविताएँ- नए साल में

 

सड़क पर तारकोल

सड़क पर बिछा है तारकोल
पैरों ने कर दिया है इंकार
यात्रा से
सिर्फ़ आँखें हैं
जो तैर रही हैं मछली की तरह
तारकोल के शरीर पर

मन है कि
भर रहा है कुलाँचें
अन्दर ही अन्दर
हिरन की भाँति
पैरों से कर रहा है अनवरत ज़िद
समझा रहा है यात्रा की
मजबूरियाँ

तन कभी हुलस रहा है
कभी झुलस रहा है
और यात्रा...
जोड़ते-जोड़ते समीकरण
धीरे-धीरे
ख़ुद को भूल रही है,
आशा और निराशा की
डाल पर
चिड़िया की तरह झूल रही है।

२९ जून २००९

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